Wednesday, August 4, 2010

हिंदुत्व तो आस्था की विषय वस्तु है ............




सबसे पहले तो मै अपनी अल्प बुद्धि से हिंदुत्व को समझने का प्रयास कर रहा हूँ .........
वैसे तो खुद को पढ़े लिखे एवं धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए तमाम शहरी लोग "हिंदुत्व" को महज़ राजनीतिक एवं साम्प्रादायिक मुद्दा बता कर कन्नी काट लेते हैं ...............मुझे उन पढ़े लिखे लोगों से कोई आपत्ति नहीं क्योंकि शायद उनके सोचने का स्तर इतना उंचा हो गया हो की "हिंदुत्व" के मायने उनके लिए मायने नहीं रखते हों ....मै स्वयं की बात करूँ तो कभी किसी हिन्दू सम्मलेन में भाग नहीं लिया हूँ , कभी किसी हिंदुत्व के   मुद्दे पर बात नहीं किया हूँ, परन्तु मै भी हिंदुत्व की बात करना चाहता हूँ, क्योंकि मेरे लिए हिंदुत्व कोई मुद्दा नहीं , कोई संकट ग्रस्त विषय नहीं ,कोई अलग धारा नहीं, वरन मेरी आस्था है ! जी हाँ हिंदुत्व मेरी आस्था है ! मेरे अंतर मन में यह गूंज शायद उस गूंज से भी बड़ी है जो आज के दौर में मंचों एवं अभिव्यक्तियों से निकलती है ! शायद ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मुझे बोलने का कोई बड़ा मंच मिला हो या मिला भी तो वो मंच हिंदुत्व के लिए नहीं बना हो ! इन सारे चीज़ों के बावजूद एक आस्था बसती है मेरे मन में वह है हिंदुत्व की आस्था ! अपनी आस्था को संभालना एवं संजोना उतना बड़ा कर्तव्य है जितना बड़ा राष्ट्र के लिए कुछ करना ! हिंदुत्व के बारे में फ़िज़ूल बातें शायद वही लोग करतें है जो या तो खुद को  समाज के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं या किसी अन्य अभिधारणा से प्रभावित होतें हैं ! "हिंदुत्व " मेरे लिए धर्म नहीं है बल्कि यह मेरे लिए धरोहर है , यह मेरे लिए परम्परा नहीं संस्कार है , यह कोई पूजा नहीं जीवन जीने की पद्धति है ! अगर इन सारे चीज़ों के पीछे कोई स्वार्थ हो तो धर्म भी है "हिंदुत्व"! मै हिन्दू हूँ इसलिए मै हिंदुत्व को नहीं मानता बल्कि हिंदुत्व मुझमे बसता है इसलिए मै हिन्दू हूँ ! मेरे मत में "हिंदुत्व" हिन्दू से ऊपर है , हिन्दू तो सिर्फ हिन्दू के घर में जन्म लेने मात्र से कोई हो सकता है परन्तु हिंदुत्व तो आस्था की विषय वस्तु है !
आपका शिवानन्द द्विवेदी "सहर"

9716248802

Wednesday, November 25, 2009

माँ का आँचल फाड़ कर ही अगर छांव मिलती हो तो भगवान मुझे हर युग हर काल में सिर्फ धुप ही धुप दें

दोस्तों ........आपके बीच एक नयी बहस के साथ अपना एक नया पोस्ट लेकर बहुत जल्दी आ रहा हूँ मै शिवानन्द द्विवेदी "सहर" ! विषय है " क्या आज भी अंग्रेजों के गुलाम नहीं हैं वो लोग जो कभी समाज के बीच सिर्फ इसलिए अंग्रेजी बोलने पर मजबूर हुए हों क्योंकि उन्हें हिंदी बोलने में शर्मिंदगी महसूस हुई हो ....? निरा बेवकूफ और गद्दार हैं वो लोग जिनके दिल में यह खौफ है कि बिना अंग्रेजी सीखे उन्हें रोटी नहीं मिल सकती , उन्हें बेहतर मुकाम नहीं मिल सकता ....! जमाने के साथ आसानी से बदल जाने वाले हैं वो लोग जिन्हें हिंदी के प्रचार एवं प्रसार से ज्यादा आसान अंग्रेजी सीख कर दो जून कि रोटी जुटाना लगता है ! इतिहास गवाह है कि समय उन्ही का रहा है जो जमाने के साथ नहीं बल्कि जमाने को बदलने में यकीं रखते थे ! मै एक ही बात कहना चाहूंगा उन गुलाम प्रवृति के मूर्खों से कि " माँ का आँचल फाड़ कर ही अगर छांव  मिलती हो तो भगवान मुझे हर युग हर काल में सिर्फ धुप ही धुप दें !"


एक शेर याद आता है -----

" हम लोग हैं जो वक़्त के सांचे में ढल गए ,


   वो लोग थे जो वक़्त के सांचे बदल गए !!"



निवेदन है सबसे कि हिस्सा बने इस बहस का ......अपने विचार मुझे मेल करें --- saharkavi111@gmail.com पर ....आपका विचार मै प्रकाशित करूंगा अपने ब्लॉग " कितने अच्छे थे वो बुरे दिन " पर .......प्रणाम

आपका


शिवानन्द द्विवेदी "सहर"

Monday, November 9, 2009

अफ़ज़ल गुरु से भी बड़ा अपराधी है राज ठाकरे : उसे सरेआम फांसी होनी चाहिए

दोस्तों ...............मुझे इतनी बर्बर एवं कटु भाषा प्रयोग करने की आदत कुछ महीने पहले तक थी , परन्तु किसी कारण से मै इस तरह की कठोर भाषा से परहेज़ करना शुरू कर दिया क्योंकि अत्यंत कटुभाषी होने के कारण मै अपना ही नुकसान कर जाता था ! ऐसा भी नहीं की मै हमेशा इस तरह की भाषा का प्रयोग करता था परन्तु गुस्से और जिद स्थिति में मैं यह हद पार कर जाता था ! मै अपने उस पुराने व्यवहार में काफी सुधार ला चुका हूँ लेकिन कई महीने बाद मुझे आज फिर गुस्सा आया है और मै बेवाकी कटु शब्दों का प्रयोग कर रहा हूँ ! हाँ मुझे गुस्सा आया उस देशद्रोही राज ठाकरे पर ....और ....और उसके कुछ चमचों पर भी ! भगवान कसम कह रहा हूँ अगर लेखनी कि किसी विधा में गालियों का कोई स्थान होता तो शायद मै राज ठाकरे को किसी विशेष उपमा से अलंकृत करता ! अबू आज़मी का वृत्तांत तो किसी से छुपा नहीं है ...राज और उसके चमचों ने भरी विधानसभा में जिस प्रकार से देश की राष्ट्रभाषा का अपमान किया यह उनके देशद्रोही होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है !राज को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की लालसा नहीं है वह तो महाराष्ट्र का प्रधानमंत्री बनना चाहता है क्योंकि वह तो महाराष्ट्र को भारत का अंग ही नहीं मानता ! जो व्यक्ति देश के संविधान की खुली अवहेलना राज्य की सबसे बड़ी पंचायत में बैठ कर रहा हो उसे देशद्रोही और गद्दार नहीं तो क्या कहा जाय ! सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अगर एक व्यक्ति के खिलाफ बोलने पर रीता बहुगुणा जोशी जेल जा सकती हैं , एक सम्प्रदाय के खिलाफ बोलने पर वरुण गांधी जेल जा सकते है तो फिर सीधे संविधान के खिलाफ बोलने वाला खुलेआम देशदोह का नंगा नृत्य कैसे कर रहा है ? ऐसे व्यक्ति को तो आजीवन कारावास या फांसी होनी चाहिए और उस संगठन को आतंकवादी संगठन के वृत्त में शामिल कर देना चाहिए ! जो व्यक्ति या संगठन अखंड भारत को भाषा एवं क्षेत्र के नाम पर विभाजित करने का प्रयास कर रहा है वो अफ़ज़ल से भी बड़ा देशद्रोही एवं अलकायदा से भी खतरनाक संगठन है ! क्या राज ठाकरे संविधान से बड़े या संप्रभु हैं जो संविधान को मुह चिड़ा रहे हैं या हमारी सरकार और प्रशासन पंगु हो गया है जो ऐसे लोगों के कृत्यों को मूक दर्शक की भांति देख रहा है ! हमारे देश को राज ठाकरे जैसे आतंकवादी विचारधारा के दूषित तत्वों से सावधान रहने कि जरुरत है ! लोग इन देशद्रोहियों से पूछें कि जब मुम्बई में ट्रेन ब्लास्ट और ताज हमला होता है तब राज़ ठाकरे और उसके मुठ्ठी भर पिठ्ठू कहाँ छुपे रहते है ? क्या वो जानने का प्रयास करते है कि मुम्बई को बचाने में जो जवान जान गवा दिए वो उत्तर भारतीय थे या मराठी मानुस ....वो मराठी बोल पाते थे कि नहीं ?

यह पोस्ट लगभग 1500 लोगो को जा रहा है और यह महज़ ब्लॉग पोस्ट नहीं मेरा गुस्सा भी है और ऐसा गुस्सा हर भारतवासी के अन्दर होना चाहिए , क्योंकि यह गुस्सा देश के लिए है !